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चांद की चांदनी | Chand ki Chandani

एक गांव में नन्दराम अपनी पत्नी सुनन्दा और बेटी खुशबू के साथ रहता था। नन्दराम के पास एक छोटा सा खेत था। जिसमें वह खेती किया करता था।

पास ही में उन्होंने एक झापड़ी बना रखी थी जिसमें वे सब रहते थे। एक दिन राम के समय घर के आंगन में तीनों सोने की तैयारी कर रहे थे। खुशबू अपनी मां के साथ सोती थी। दोंनो मां बेटी बातें कर रहीं थीं।

खुशबू: मां हमें घर में लाईट क्यों नहीं है। गांव के अधिकतर घरों में लाईट होती है।

सुनन्दा: बेटी ऐक दिन हमारा भी पक्का मकान होगा तब उसमें लाईट लग जायेगी। अभी देखो लाईट न होने के फायदे एक तो हम दिन में सारा काम निबटा लेते हैं जैसे दिन में ही खाना बना कर खा लेते हैं। इससे सेहत सही रहती है। दूसरा हम जल्दी सो जाते हैं। इससे सुबह जल्दी उठ जाते हैं।


खुशबू: लेकिन मां रात को तो इतना अंधेरा हो जाता है।

सुनन्दा: बेटी वो देखो आसमान में चांद कितनी अच्छी रोशनी हमें दे रहा है। फिर हमें अंधेरे में कहां हैं? और हां ये रोशनी जीवन भर तुम्हारे साथ रहेगी चाहें तुम कहीं भी जाओ। जब भी बड़े होकर तुम चांद को देखो तो अपनी मां की बात को याद रखना।

इसी तरह समय बीत रहा था। एक दिन खुशबू की मां सुनन्दा की तबियत ज्यादा खराब हो जाती है। उसे अस्पताल ले जाते हैं लेकिन वह बच नहीं पाती। खुशबू अपनी मां से लिपट कर बहुत रोती है।

नन्दराम भी पत्नि की मौत से बहुत टूट जाते हैं। कुछ दिन बाद वे अपने खेत और घर को बेच कर खुशबू को लेकर शहर आ जाते हैं। इन पैसों से नन्दराम एक छोटी सी दुकान खोल लेते हैं। खुशबू का दाखिला एक स्कूल में करा देते हैं।

खुशबू पढ़ने में बहुत तेज थी। वह स्कूल जाती और दोपहर को घर आकर खाना बना कर अपने पिता को दुकान पर देने जाती। दोंनो बाप बेटी मिलकर खाना खाते। शाम को नन्दराम दुकान से आने के बाद खाना बनाते थे।

अब वे अपने छोटे से किराये के मकान में रहते थे रात को सोते समय खुशबू को मां की बहुत याद आती। वह दौड़ कर चांद को देखने छत पर पहुंच जाती थी।

इसी तरह समय बीत जाता है। खुशबू पढ़ लिख कर डॉक्टर बन जाती है। उसे एक सरकारी अस्पताल में नौकरी मिल जाती है।

एक दिन जब नन्दराम दुकान से घर आते हैं –

खुशबू: पिताजी आपको एक खुशखबरी सुनानी है। मेरा तबादला हमारे गांव में हो गया है। अब हम अपने गांव चलते हैं।

नन्दराम: लेकिन बेटी वहां अब क्या रखा है? वैसे भी मेरा मन वहां जाने का बिल्कुल नहीं है। तेरी मां के मरने के बाद मेरा वहां मन नहीं लगा इसलिये मैं यहां चला आया।

खुशबू: पिताजी मुझे मां की बहुत याद आती है। चलो न वहां जाकर अपना घर देखते हैं क्या पता वह हमें वापिस मिल जाये मैं उसे खरीद लूंगी। मां की यादें जुड़ी हैं उस घर से।

नन्दराम: लेकिन बेटी यहां दुकान का क्या होगा?

खुशबू: पिताजी अब आप आराम कीजिये बहुत मेहनत कर चुके आप इस दुकान को बेचकर गांव में एक खेत खरीद लेंगे और मजदूरों से उस पर काम करवायेंगे।

कुछ दिन बाद दोंनो बाप बेटी गांव पहुंच जाते हैं। वहां जाकर ज्यादा कीमत देकर खुशबू अपना मकान खरीद लेती है। गांव में ही किराये पर रहते हुए खुशबू उस मकान को पक्का बनवाती है। वहां अब लाईट भी लग चुकी थी।

इधर नन्दराम गांव में खेत खरीद कर खेती बाड़ी करवाने लगता है।

एक दिन जब नन्दराम घर वापस आता है तो देखता है खुशबू उसका और अपना बिस्तर आंगन में लगा रही थी।


नन्दराम: बेटी अंदर सो जाती यहां तो पंखा भी नहीं है।

खुशबू: पिताजी यहां सोने पर ऐसा लगता है। जैसे मां के साथ सो रही हूं। जब इस चांद की चांदनी मेरे उपर पड़ती है तो मां की याद आ जाती है।

अब हर दिन दोंनो आंगन में सोते। खुशबू अपने मां के बताये रास्ते पर चलती शाम होती ही खाना बना लेती और रात को जल्दी सोकर सुबह जल्दी उठते थे।

वहीं गांव के पास एक दूसरे गांव में एक जमीदार रहते थे। वे एक दिन नन्दाराम से मिलने आते हैं और अपने बेटे के लिये खुशबू का हाथ मांगते हैं।


नन्दराम खुशबू से बात करते हैं। देखभाल करके खुशबू शादी के लिये तैयार हो जाती है।

जब खुशबू घर से विदा हो रही थी। तो वह अपने पिता से कहती है –

खुशबू: पिताजी मेरा बिस्तर संभाल कर रखना। मैं जब भी आपसे मिलने आउंगी यहीं आंगन में चांद की रोशनी नीचे सोया करूंगी।

यह सुनकर नन्दराम की आंखों से आंसू बहने लगते हैं।

नन्दराम: हां बेटी मुझे भी अहसास है कि तेरी मां तेरा इंतजार करती रहेगी।

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